द हिंदू: 3 जुलाई 2025 को प्रकाशित:
क्यों चर्चा में है?
2025 की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) और 2025 के केंद्रीय बजट में गिग व प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों को औपचारिक रूप से पहचान देने के प्रयास हुए हैं। लेकिन श्रम आंकड़ों में अभी भी गिग वर्कर्स की स्पष्ट श्रेणीकरण की कमी है, जिससे वे सरकारी नीतियों में अदृश्य रह जाते हैं।
पृष्ठभूमि:
गिग इकॉनमी में अस्थायी, कार्य-आधारित व डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाने वाला कार्य शामिल है (जैसे: स्विगी, जोमैटो, उबर)।
2020 के सामाजिक सुरक्षा संहिता में गिग व प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की परिभाषा दी गई थी।
नीति आयोग की 2022 रिपोर्ट के अनुसार, 2029-30 तक भारत में गिग कार्यबल 2.35 करोड़ तक पहुँचने की संभावना है।
फिर भी, भारत का मुख्य श्रम सर्वेक्षण PLFS, इन्हें अलग से नहीं गिनता है।
मुख्य समस्याएं:
1. सांख्यिकीय अदृश्यता
PLFS में गिग वर्कर्स को "स्व-रोज़गार", "आकस्मिक श्रमिक" जैसी श्रेणियों में रखा जाता है।
इससे नीति निर्धारण में सटीकता की कमी होती है और कई बार ये श्रमिक योजनाओं से बाहर रह जाते हैं।
2. गलत वर्गीकरण:
गिग कार्य में कई ऐप पर काम, एल्गोरिदम पर निर्भरता, अनुबंध की कमी और अस्थिर आय शामिल होती है।
PLFS इन विशिष्टताओं को दर्ज नहीं करता।
3. नीति बनाम आंकड़ा अंतर:
सरकार ने e-Shram पोर्टल, आयुष्मान भारत, डिजिटल ID कार्ड जैसी पहलों से गिग वर्कर्स को पहचाना है।
लेकिन PLFS का प्रश्नावली अभी भी गिग वर्क के स्वरूप को नहीं दर्शाती।
प्रभाव
नीति पर:
कल्याण योजनाओं का मूल्यांकन व क्रियान्वयन PLFS आंकड़ों पर आधारित है।
बिना स्पष्ट वर्गीकरण के, गिग वर्कर्स योजनाओं से बाहर हो सकते हैं।
गिग वर्कर्स पर:
उनकी रोज़गार अस्थिरता, सामाजिक सुरक्षा की जरूरतें, व कार्य की प्रकृति का कोई आंकड़ा नहीं।
औपचारिक लाभों से वंचित रह जाते हैं।
सुझाव / उपाय:
1- PLFS प्रश्नावली में संशोधन
“गिग” व “प्लेटफॉर्म” श्रमिकों की नई श्रेणियां जोड़ी जाएं।
2- विशेष गिग सर्वेक्षण मॉड्यूल
जैसे:
कितने प्लेटफॉर्म्स पर कार्य?
आय में उतार-चढ़ाव?
अनुबंध की प्रकृति?
एल्गोरिदम पर निर्भरता?
3- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से डेटा साझेदारी
ताकि वास्तविक डेटा मिले।
4- सांख्यिकीय प्रणाली का आधुनिकीकरण
PLFS को e-Shram व आधार से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष:
भारत में गिग श्रमिकों को कानून व नीति में मान्यता मिली है, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों में अब भी वे गायब हैं। PLFS जैसे राष्ट्रीय डेटा स्रोतों में इनकी स्पष्ट उपस्थिति के बिना, वे नीतिगत प्रतिनिधित्व व लाभों से वंचित रहते हैं। बदलते डिजिटल श्रम परिदृश्य के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए PLFS में वर्गीकरण सुधार अनिवार्य है।