बिहार भारत के सबसे समृद्ध पाषाण युग पुरातात्विक क्षेत्रों में से एक है। यहाँ के उत्खनन से मानव जीवन, औजार निर्माण, शिकार, संग्रहण और प्रारंभिक बस्तियों की जानकारी मिलती है। पाषाण युग को बिहार में तीन मुख्य चरणों में बांटा गया है:
1. प्राचीन पाषाण युग (Palaeolithic Age)
मुख्य स्थल: मुंगेर, नालंदा
a) प्रारंभिक / लोअर पाषाण युग (500,000 – 50,000 ई.पू.)
- जीवनशैली: शिकारी-संग्राहक, मछली और पक्षियों पर निर्भर
- औजार: साधारण क्वार्ट्ज चॉपिंग टूल्स
- महत्व: मानव औजार निर्माण और अनुकूलन की शुरुआत

b) मध्य पाषाण युग (50,000 – 40,000 ई.पू.)
- जीवनशैली: शिकारी-संग्राहक, आग का प्रयोग सीखना
- औजार: ब्लेड, पॉइंट, बोरर, स्क्रैपर
- प्रमुख स्थल: मिर्जापुर जैसी तकनीकें बिहार में अपनाई गईं

c) उच्च पाषाण युग (40,000 – 10,000 ई.पू.)
- जीवनशैली: आधुनिक मानव गुफाओं और शैलाश्रयों में रहते थे
- उपलब्धियाँ: चित्रकला और प्रतीकात्मक कला
- औजार: उन्नत ब्लेड और ब्यूरीन
- प्रमुख स्थल: बेलन घाटी

2. मध्य पाषाण युग (Mesolithic Age)
मुख्य स्थल: पैसारा (मुंगेर)
- जीवनशैली: शिकार, मछली पकड़ना, भोजन संग्रह; पशुपालन की शुरुआत
- कृषि: पौधों की खेती का प्रारंभ
- औजार: छोटे, परिष्कृत पत्थर के औजार

3. नवपाषाण युग (Neolithic Age)
मुख्य स्थल: सेनवर (बिहार), मास्की, ब्रह्मगिरी, हल्लूर
- जीवनशैली: स्थायी बस्तियाँ, कृषि, पशुपालन
- कृषि: गेहूँ और जौ की खेती
- औजार और तकनीक: पॉलिश्ड पत्थर की कुल्हाड़ी, हड्डी के औजार, मिट्टी के बर्तन, पहिया का उपयोग

- महत्व: भोजन उत्पादन, गाँव का जीवन, जटिल सामाजिक संगठन
निष्कर्ष
बिहार की पाषाण युग विरासत मानव विकास की कहानी बयाँ करती है:
- प्राचीन पाषाण युग: साधारण पत्थर के औजार, शिकार
- मध्य पाषाण युग: पशुपालन, भोजन संग्रह
- नवपाषाण युग: कृषि, स्थायी बस्तियाँ, पॉलिश्ड औजार