भारतीय विदेश नीति के लिए वादों का खोता वर्ष

भारतीय विदेश नीति के लिए वादों का खोता वर्ष

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The Hindu: - प्रकाशित 26 दिसंबर 2025

 

समाचार में क्यों?

साल 2025 भारत की विदेश नीति के लिए उच्च अपेक्षाओं के साथ शुरू हुआ। 2024 के चुनावों के बाद, पीएम नरेंद्र मोदी सक्रिय कूटनीति पर लौटने का लक्ष्य रखते थे—ट्रंप 2.0 के तहत अमेरिका के साथ संबंध रीसेट करना, चीन के साथ LAC तनाव को हल करना, और रूस से $52 बिलियन के तेल आयात सुनिश्चित करना। लेकिन साल के अंत तक, आर्थिक, ऊर्जा, क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों के बीच कई वादे धुंधले पड़ गए।

 

आर्थिक और ऊर्जा संबंधी चुनौतियाँ

  • टैरिफ प्रभाव: 25% रेसिप्रोकल टैरिफ ने अपैरल, ज्वेलरी और सीफूड पर असर डाला; GSP हटा लिया गया; $52B रूस तेल आयात प्रभावित।
  • FTA सीमाएँ: UK, ओमान और न्यूज़ीलैंड के साथ समझौते साइन हुए, लेकिन US-EU BTA लटका। H-1B वीज़ा प्रतिबंध से रेमिटेंस को खतरा।
  • चीन-रूस तनाव: मोदी-शी-पुतिन फोटो-ऑप के बावजूद LAC अनसुलझा रहा; रूस के तेल पर नई सैंक्शंस।

व्यापार में 25% टैरिफ के कारण फैक्ट्री बंद और नौकरियों में नुकसान, रूसी तेल सैंक्शंस से $52B आयात संकट, और H-1B कटौती से रेमिटेंस में गिरावट।

 

रणनीतिक और रक्षा आयाम

चीन के साथ LAC तनाव उच्च-स्तरीय फोटो-ऑप के बावजूद जारी रहा। रूस पर नई तेल और रक्षा प्रौद्योगिकी सैंक्शंस ने पारंपरिक गठबंधनों की कमजोरियों को उजागर किया। क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों में पहलगाम हमला, बांग्लादेश और नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता, तालिबान वार्ता, म्यांमार चुनाव, और सऊदी-पाक रक्षा समझौता शामिल थे। भारत की रणनीति ने सीमा प्रबंधन, सैन्य तत्परता और साइबर और अंतरिक्ष जैसे उभरते खतरों की अहमियत को दर्शाया।

 

वैश्विक और बहुपक्षीय जुड़ाव

भारत ने 2025 में जटिल वैश्विक परिदृश्य को नेविगेट किया। ट्रंप-शी मीटिंग्स ने एशिया-प्रशांत शक्ति संतुलन को कमजोर किया, और गाजा व यूक्रेन जैसे संघर्षों पर वैश्विक प्रतिक्रियाएँ आक्रामक देशों के पक्ष में रहीं। चीन की वैकल्पिक वैश्विक शासन संरचनाओं की पहल ने भारत की बहुपक्षीय प्रभावशीलता को चुनौती दी। जबकि QUAD मजबूत हुआ, भारत का यूरोप और अन्य मध्य शक्ति देशों के साथ जुड़ाव सीमित रहा। यह दर्शाता है कि वैश्विक शासन, जलवायु वार्ता और तकनीकी मानकों में अधिक विविध और सक्रिय भूमिका आवश्यक है।

 

प्रौद्योगिकी, व्यापार और नवाचार कूटनीति

वैश्विक व्यापार में धीमी गति ने भारत के निर्यात कमजोरियों को उजागर किया। टैरिफ दबाव ने सप्लाई चेन डायवर्सिफिकेशन (China+1 रणनीति), क्षेत्रीय मैन्युफैक्चरिंग हब और घरेलू प्रतिस्पर्धा पर चर्चा तेज़ की। साथ ही, भारत ने तकनीकी साझेदारी, डिजिटल गवर्नेंस और AI एथिक्स में अपने गठबंधनों को मजबूत किया, जिससे आर्थिक और तकनीकी कूटनीति के साथ सॉफ्ट पावर संतुलित हुई।

 

सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक कूटनीति

भारत ने अपनी सांस्कृतिक कूटनीति को जारी रखा, जिसमें G20, योग कूटनीति और मीडिया संलग्नता शामिल हैं। दक्षिण एशिया में सांस्कृतिक पहल और इंडो-पैसिफिक में मानवीय सहायता ने भारत की “विश्वमित्र” छवि को प्रदर्शित किया, हालांकि भू-राजनीतिक तनावों ने प्रभावशीलता सीमित की।

 

2026 के लिए सबक

भारत को यह समझना होगा कि सिर्फ फोटो-ऑप और औपचारिक कृत्य रणनीतिक जुड़ाव की जगह नहीं ले सकते। मुख्य सबक:

  • मूल्य-आधारित कूटनीति को प्राथमिकता दें: लगातार सिद्धांतों को बनाए रखें और आंतरिक व बाहरी संदेश में संतुलन रखें।
  • क्षेत्रीय साझेदारियों को मजबूत करें: पड़ोसी देशों और इंडो-पैसिफिक में व्यावहारिक जुड़ाव से नए खतरों का मुकाबला करें।
  • आर्थिक और ऊर्जा कूटनीति को विविध बनाएं: एकल साझेदार पर निर्भरता कम करें और घरेलू प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएँ।
  • रणनीतिक स्वायत्तता में निवेश करें: लंबी अवधि की सुरक्षा के लिए सैन्य, साइबर, अंतरिक्ष और तकनीकी क्षमता को मजबूत करें।
  • बहुपक्षीय जुड़ाव: वैश्विक शासन, जलवायु नीतियों और डिजिटल मानकों को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।

सतर्क, मूल्य-आधारित और बहुआयामी कूटनीति, क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक साझेदारियों को प्राथमिकता देते हुए, 2025 की निराशाओं की पुनरावृत्ति रोकने और 2026 में भारत की स्थिति मजबूत करने के लिए आवश्यक है।

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