पाकिस्तान-अफ़ग़ान संबंधों में पुनर्संरेखण:

पाकिस्तान-अफ़ग़ान संबंधों में पुनर्संरेखण:

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द हिंदू: 14 अक्टूबर 2025 को प्रकाशित।

 

चर्चा में क्यों है?

11–12 अक्टूबर, 2025 को पाकिस्तान और अफगानिस्तान (तालिबान शासन) के बीच ड्यूरंड रेखा के साथ बड़े पैमाने पर झड़पें हुईं, जिनमें दोनों पक्षों को भारी जनहानि हुई।

यह 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों के बीच हुई सबसे गंभीर और हिंसक मुठभेड़ों में से एक है।

यह संघर्ष उस संबंध में गहरी दरार को दर्शाता है, जिसे कभी राजनीतिक और रणनीतिक रूप से घनिष्ठ माना जाता था।

 

क्या हुआ?

पाकिस्तान की सेना ने बताया कि उसने अफगानिस्तान के भीतर "तालिबान शिविरों, प्रशिक्षण केंद्रों और आतंकवादी नेटवर्कों" पर सटीक हवाई हमले और छापेमारी की।

अफगानिस्तान (तालिबान) ने इसका जवाब देते हुए कहा कि यह 9 अक्टूबर को काबुल और पकतीका प्रांतों में पाकिस्तान के पहले हवाई हमलों की प्रतिक्रिया थी।

तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने चेतावनी दी कि यदि पाकिस्तान ने फिर से अफगान क्षेत्र का उल्लंघन किया, तो वे “कड़ा जवाब देंगे।”

इस हिंसा के बाद, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के साथ अपनी सीमा चौकियां बंद कर दीं।

 

पृष्ठभूमि:

पाकिस्तान ने 1990 के दशक से भारत के खिलाफ रणनीतिक गहराई प्राप्त करने के उद्देश्य से तालिबान का समर्थन और पोषण किया था।

हालांकि, 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से दोनों के बीच संबंध बिगड़ने लगे, मुख्यतः निम्न कारणों से —

तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को समर्थन,

ड्यूरंड रेखा पर सीमा प्रबंधन,

और भारत, चीन व रूस की ओर तालिबान की स्वतंत्र विदेश नीति।

ड्यूरंड रेखा (2,640 किमी) जो पश्तून जनजातीय क्षेत्रों को विभाजित करती है, अफगानिस्तान द्वारा अब भी विवादित मानी जाती है।

 

भू-राजनीतिक संदर्भ (Geopolitical Context):

पहले पाकिस्तानी हवाई हमले 9 अक्टूबर को काबुल और पकतीका में हुए।

काबुल पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (KP) प्रांत के निकट है, जिससे हवाई हमले संभव हो पाते हैं।

11–12 अक्टूबर की झड़पें उत्तर में चितराल से लेकर दक्षिण में वज़ीरिस्तान तक फैलीं — जो संघर्ष की गंभीरता को दर्शाती हैं।

 

तनाव के प्रमुख कारण:

(a) शक्ति की धारणा में अंतर (Power Perception Gap):

पाकिस्तान अब भी तालिबान को एक अधीनस्थ या आश्रित शासन के रूप में देखता है, जबकि तालिबान स्वयं को स्वतंत्र और संप्रभु मानता है।

 

(b) TTP को समर्थन:

पाकिस्तान तालिबान पर तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप लगाता है, जो पाकिस्तान में हमलों के ज़िम्मेदार हैं।

 

(c) पाकिस्तान में कमजोर नागरिक-सैन्य संतुलन (Weak Civil-Military Balance):

अफगान नीति में पाकिस्तान की सेना का दबदबा है, नागरिक या संसदीय नियंत्रण नगण्य है, जिसके कारण नीति अत्यधिक कठोर हो गई है।

 

(d) अफगान शरणार्थियों की वापसी (Deportation of Afghan Refugees):

2023 से पाकिस्तान अफगान शरणार्थियों को जबरन निकाल रहा है, जिनमें पंजीकृत शरणार्थी भी शामिल हैं। तालिबान और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने इसकी आलोचना की है।

 

(e) व्यापारिक सीमाओं का बंद होना (Closure of Trade Borders):

पाकिस्तान अक्सर तोर्खम और चमन जैसे प्रमुख व्यापारिक मार्गों को बंद कर देता है ताकि अफगानिस्तान पर दबाव बनाया जा सके।

भूमिबद्ध अफगानिस्तान के लिए ये मार्ग आर्थिक जीवनरेखा हैं।

 

अन्य शक्तियों की भूमिका:

चीन: अगस्त 2025 में विदेश मंत्री वांग यी ने काबुल का दौरा किया और खनन व बुनियादी ढांचा निवेश का वादा किया।

रूस: जुलाई 2025 में तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता दी।

भारत: संघर्ष के दौरान अफगान विदेश मंत्री की मेज़बानी की — जिसे इस्लामाबाद ने उकसावे के रूप में देखा।

तालिबान के भारत, मॉस्को और बीजिंग के साथ बढ़ते संबंध उसकी स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाते हैं, जिससे पाकिस्तान असहज है।

 

रणनीतिक प्रभाव:

यह संघर्ष पाकिस्तान के तालिबान पर नियंत्रण के अंत का संकेत है।

अफगानिस्तान अब अपने राजनयिक और आर्थिक साझेदारों का विस्तार कर रहा है।

पाकिस्तान अपनी वह रणनीतिक गहराई खो सकता है, जो 1980 के दशक से उसकी सैन्य नीति का केंद्र रही है।

यह हिंसा पाक-अफगान सीमा क्षेत्र को अस्थिर कर सकती है, जिससे दक्षिण और मध्य एशिया की सुरक्षा प्रभावित होगी।

शरणार्थी संकट और सीमापार आतंकवाद और भी बढ़ सकता है।

 

पाकिस्तान पर आंतरिक प्रभाव:

पाकिस्तान वर्तमान में कई आंतरिक संकटों से जूझ रहा है —

खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में आतंकवाद का पुनरुत्थान,

आर्थिक संकट और IMF पर निर्भरता,

तथा राजनीतिक व्यवस्था में नागरिक-सैन्य तनाव।

सेना की आक्रामक अफगान नीति से अस्थिरता और पश्तून विरोधी भावना और गहरी हो सकती है।

 

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने पाकिस्तान के शरणार्थी निष्कासन की निंदा की।

क्षेत्रीय पर्यवेक्षकों को डर है कि यह संघर्ष पड़ोसी देशों तक फैल सकता है।

चीन और रूस संभवतः शांत मध्यस्थता करेंगे ताकि स्थिति और न बिगड़े।

 

भविष्य की दृष्टि:

दोनों देशों के संबंध तब तक तनावपूर्ण और टकरावपूर्ण बने रहेंगे जब तक —

वे TTP और सीमा प्रबंधन पर द्विपक्षीय संवाद नहीं करते,

पाकिस्तान अफगान नीति पर सैन्य नियंत्रण को कम नहीं करता,

और तालिबान स्वतंत्रता और व्यवहारिकता के बीच संतुलन नहीं बनाता।

वर्तमान परिस्थिति दक्षिण एशियाई भू-राजनीति को पुनर्परिभाषित कर सकती है, जिससे काबुल में पाकिस्तान का पारंपरिक प्रभाव कम होगा।

 

सारगर्भित दृष्टिकोण:

पाकिस्तान–तालिबान संघर्ष एक ऐतिहासिक पुनर्संतुलन (historic realignment) का प्रतीक है।

पाकिस्तान का अफगानिस्तान को अपने रणनीतिक नियंत्रण में रखने का प्रयास उल्टा पड़ गया है।

तालिबान की स्वतंत्र विदेश नीति, भारत–चीन–रूस से बढ़ते संबंध और पाकिस्तान की आंतरिक कमजोरी मिलकर दक्षिण-मध्य एशिया में एक नए क्षेत्रीय संतुलन को जन्म दे रही हैं।

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